बुद्ध ने आध्यात्मिक आवश्यकता को सर्वोपरि माना जिसके आधार पर उन्हें ऐसी शक्तियां प्राप्त हुईं,जिसके द्वारा वे सामान्य व्यक्तियों की श्रेणी से उपर उठकर ईश्वर तुल्य बन गए।मनुष्य वस्तुतः विचारों का पुंज हैं।उसके दृष्टिकोण के आधार पर ही उसके बाहरी स्वरूप व आंतरिक स्वरूप का निर्माण होता है।आस्थाएं एवं मान्यताएं यदि सही बनती चली जाएं तो परिस्थितियां कैसी भी हों मानवीय उत्कर्ष का विकास होकर ही रहता है,यह एक सुनिश्चित तथ्य है।जीवन एक चुनौती है, एक संग्राम है,इसे इसी रूप में स्वीकारने के अतिरिक्त हमारे पास कोई चारा नहीं हैं।अच्छा हो हम जीवन को इसी रूप में अंगीकार कर एक कलाकार की भांति जिएं।हँसती-हँसाती, हल्की-फुल्की जिंदगी जीते हुए औरों को अधिकाधिक सुख बांटते चलें।
दुखों को,कष्टों को, तप मानकर सहन करें, साथ ही अपना सौभाग्य मानें।जीवन जीने की यह सही रीति एवं नीति हैं। बुद्ध ने संसार में सबसे पहला विश्व धर्म स्थापित किया, जो मनुष्य मात्र के लिए था। सब प्रकार के ढोंग और अंधविश्वासों को हटाकर बुद्धि विवेक और प्रेम के आधार पर सरल और पवित्र जीवन निर्वाह का आदेश दिया । वे पंडितों की भाषा छोड़कर सर्वसाधारण भाषा में उपदेश देने लगे। शिक्षित, अशिक्षित, धनी और निर्धन सबके लिए उनकी वाणी तीर्थ बन गई।